Friday 31 July 2020

आयुर्वेद में आंतरायिक उपवास का महत्‍व – Intermittent Fasting Importance in Ayurveda

आयुर्वेद में आंतरायिक उपवास का महत्‍व - Intermittent Fasting in Ayurvedaआज के जीवन शैली में dieting, Intermittent fasting (IF) जैसे शब्‍द प्रचलन में बढ़ रहे हैं । यद्यपि हिन्‍दू धर्म सहित मुस्लिम, बौद्ध, जैन कई धर्मो में धार्मिक उपवास या व्रत की बात कही गई है । फिर नई पीढ़ी के लोग इसकी अवहेलना करते रहे किन्‍तु अब जब उपवास को विज्ञान सम्‍मत स्‍वास्‍थ्‍य के […] More

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9 Health benefits of angled loofah

The scientific name of angled loofah is Luffa acutangulas. It belongs to family Cucurbitaceae. The color of angled loofah is green. The shape of this plant is clavate oblong and it is from 15 – 30 cm long. It is a pan tropical climbing herb. It is cultivated throughout India and it is grown in […]

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सफेददाग का आयुर्वेदिक प्रबंधन – Ayurvedic Management of Vitiligo

सफेददाग का आयुर्वेदिक प्रबंधन - Ayurvedic Management of Vitiligoविज्ञान के विकास के साथ-साथ चिकित्‍सा विज्ञान का विकास हुआ है आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान जहॉं तत्‍कालिक परिणाम देने के लिये विख्‍यात हैं वहीं गंगीर से गंगीर शल्‍य करने में भी सक्षम है किन्‍तु इतने विकास के बाद भी कुछ रोग ऐसे हैंजिसे आधुनिक चिकित्‍सा विज्ञान नियंत्रित तो कर सकता है किन्‍तु जड़ से समाप्‍त नहीं […] More

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लिवर सिरोसिस का आयुर्वेदिक प्रबंधन – Ayurvedic Management of Liver Cirrhosis

लिवर सिरोसिस का आयुर्वेदिक प्रबंधन - Ayurvedic Management of Liver Cirrhosisमहर्षी चरक के अनुसार-”किसी चिकित्‍सा पद्यति में न तो कोई ऐसी पुस्‍तक न ही हो सकती है जिसमें भूत, भविष्‍य एवं वर्तमान के समस्‍त रोगों का नाम लिखा हो । आयुर्वेद ने बताया है कि रो भले असंख्‍य हों परिचित हों, अपरिचित हो, नया हो या पुराना । उनके संक्षिप्‍त एवं सूत्रबद्ध हैं । इसलिये […] More

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आयुर्वेदीय चिकित्सा एवं आयुर्वेदिक औषधियां – Ayurvedic Treatment & Ayurvedic Medicine

आयुर्वेदीय चिकित्सा एवं आयुर्वेदिक औषधियां - Ayurvedic Treatment & Ayurvedic Medicineआयुर्वेद के अनुसार कोई भी रोग केवल शारीरिक एवं केवल मानसिक नहीं होता अपितु  यदि शारीरिक रोग हो जाये तो इसका सीधा-सीधा प्रभाव मन पर और यदि मानसिक हो जाये तो इसका सीधा-सीधा प्रभाव शरीर पर निश्‍चित रूप से पड़ता है । इसी कारण आयुर्वेद का एक सफल वैद्य अपने रोगी के केवल रोग के […] More

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भारत में आयुर्वेदीय चिकित्सा उद्योग – Ayurvedic Medical Industry in India

भारत में आयुर्वेदीय चिकित्सा उद्योग - Ayurvedic Medical Industry in Indiaआयुर्वेदिक उत्पाद एक व्यक्तिगत देखभाल और स्वास्थ्य संबंधी उत्पाद हैं जो औषधीय उपचार प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाते हैं। महिलाओं के शिक्षित होने की दर अधिक होने एवं कामकाजी महिलाओं की संख्‍या में वृद्धि होने कारण तथा ब्‍यूटी प्रोडक्‍ट में लगातार रसायनों के बढ़ते दर के कारण महिलयां व्‍यक्तिगत देखभाल के लिये हर्बल सौदर्य […] More

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आयुर्वेदिक आयुर्विज्ञान की शिक्षा एवं अनुसंधान – Education and Research in Ayurvedic Medicine

आयुर्वेदिक आयुर्विज्ञान की शिक्षा एवं अनुसंधान - Education & Research in Ayurvedकिसी भी ज्ञान को व्‍यवहारिक रूप से उपयोगी बनाने के लिये आवश्‍यक है कि उस ज्ञान का शोधन एवं परिक्षण होते रहना चाहिये । उस ज्ञान के विकास के लिये यह भी आवश्‍यक है कि उसे आने वाली पीढ़ी तक इसे पहुँचाया जाये । इसी क्रिया को आज शिक्षा या शिक्षण कहते हैं । चिकित्‍सा […] More

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आयुर्वेद के प्रवर्तक से आज के आयुर्वेदिक संस्थान – From the Original Promoters of Ayurveda to the Ayurvedic Institutes of today

आयुर्वेद के प्रवर्तक से आयुर्वेदिक संस्थान - From the origin of Ayurveda to todayश्रीमद्भागवत पुराण के साथ-साथ कई अनेक हिन्‍दू धार्मिक ग्रन्‍थों में समुद्रमंथन की चर्चा है । श्रीमद्भागवत के अनुसार इस समुद्रमंथन से साक्षात भगवान बिष्‍णु के अंशांश अवतार हाथों में कलश लिये धनवंतरी प्रगट हुये, जो आयुर्वेद के प्रवर्तक थे ।  महर्षि बाल्‍मीकी ने अपनी कृति रामायण में धनवंतरी को ‘आयेर्वेदमय’ अर्थात आयुर्वेद का साक्षात स्‍वरूप […] More

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दैनिक जीवन में आयुर्वेद – Ayurveda in Everyday Life

दैनिक जीवन में आयुर्वेद - Use of Ayurveda in Everyday Lifeभूमिका – Prelude स्‍वास्‍थ्‍य के बिना मनुष्‍य संसार में अपने इच्‍छा अनुसार सफलता प्राप्‍त नहीं कर सकता ।  अपने लक्ष्‍य में सफल होने के लिये मनुष्‍य को स्‍वस्‍थ मन और स्‍वस्‍थ तन की आवश्‍यकता है ।  मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य और शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य एक दूसरे के पूरक हैं । किसी भी काम करने के लिये प्रेरित करते […] More

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आयुर्वेद और आयुर्वेदिक चिकित्‍सा पद्यति की व्‍यापकता -The prevalence of Ayurveda and Ayurvedic medicine system

आयुर्वेद और आयुर्वेदिक चिकित्‍सा पद्यति की व्‍यापकता - The prevalence of Ayurveda and Ayurvedic medicine systemभूमिका – Prelude ”जान है तो जहॉंन है।” और ”स्‍वस्‍थ तन में ही स्‍वस्‍थ मन का वास होता है।” ऐसे हजरों स्‍लोगन हमारे भारतीय समाज में प्रचलित  हैं । ये सभी स्‍लोगन हमें अपने स्‍वाथ्य के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ स्‍वास्‍थय के महत्‍व को प्रदर्शित करते हैं । वास्‍तव में हमें कुछ भी छोटे […] More

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Introduction to Ayurveda – आयुर्वेद – एक परिचय

Introduction to the world of Ayurveda - आयुर्वेद - एक परिचयIntroduction – भूमिका सृष्टि के उत्‍पत्‍ती के साथ ही मानव जीवन का विकास प्रारंभ हुआ । आदि मानव से आज के आधुनिक मानव सम्‍भ्‍यता तक अनेक सोपानों से होकर मनुष्‍य गुजरा है । समय के अनुसार उनके आवश्‍यकताओं में भी परिवर्तन हुआ है किन्‍तु मूलभूत आवश्‍यकताएं तो वहीं के वहीं रहे केवल उनके स्‍वरूप में […] More

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Thursday 30 July 2020

Ayurvedic management of Polycystic Ovary Syndrome (PCOS)- पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) का आयुर्वेदिक प्रबंधन

Ayurvedic management of polycystic ovary syndrome in Hindiआयुर्वेद केवल और केवल प्राकृतिक हर्बल औषधियों के आधार पर ही निदानात्‍मक उपचार करता है । आयुर्वेद लोगों काे स्‍वस्‍थ जीवन जीने का मार्ग प्रशस्‍त करती है । यह किसी भी रोग या स्‍वास्‍थ की विपरित परिस्थितियों से सामना करने का मार्ग प्रशस्‍त करती है । पर्यावरणीय असंतुलन एवं खान-पान में असंतुलन के कारण आज […] More

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Fibrous tumor symptoms and causes

The fibrous tumor is also known as solitary fibrous tumor. It is a rare growth of soft tissue cells which can form nearly anywhere in the body. It begins in the tissue which connects, support and surrounds other body structures. This is including muscle, fat, blood vessels, nerves, tendons and the lining of the joints. […]

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E. coli infection symptoms and causes

The E. coli infection is a type of bacteria which normally lives in the intestines of people and animals. But, there are some types of E. coli, particularly E. coli O157:H7 which can lead to intestinal infection. The E. coli O157:H7 and other strains which cause intestinal sickness are called Shiga toxin – producing E. […]

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Chronic pelvic pain in women – Symptoms and causes

The chronic pelvic pain in women is pain that happens in the area below the bellybutton and between your hips and it lasts 6 months or longer. The chronic pelvic pain in women can have many different causes. It can be a condition on its own right or it can be a symptom of another […]

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Chronic pelvic pain in men – Symptoms and causes

The term chronic pelvic pain in men is also known as prostatodynia. It is a pain which is associated irritative voiding symptoms and the pain located in the perineum, genitalia or groin in the absence of pyuria and bacteriuria (in the microscopic analysis of the urine is there no pus cells or bacteria). But, excess […]

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12 Childhood Impetigo Symptoms and Causes

The impetigo is an infection of the skin. When it affects just the surface, then it is known as superficial impetigo. Childhood impetigo is also known as school sores, because it is a very common condition among school children. The sores of the skin which are caused by the impetigo are usually itchy. Also, impetigo […]

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Adenomyosis: Symptoms, Causes and Risk Factors

The adenomyosis is happening when the tissue which normally lines in the uterus (also known as endometrial tissue) grows into the muscular wall of the uterus. The displaced tissue is continuing to act normally (this means thickening, breaking down and bleeding) during each menstrual cycle. The enlarged uterus and painful, heavy periods can be results […]

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Wednesday 29 July 2020

What is Balasana? Steps and its benefits – बालासन योग क्या है? तरीका और इसके फायदे

What is Balasana? Steps and its benefits - बालासन योग क्या है? तरीका और इसके फायदेबालासन योग को चाइल्ड पोज़ (Child pose) भी कहा जाता है। बाला एक संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ होता है “बच्चा” जबकि आसन का अर्थ होता है “बैठना” इसलिए इसका शाब्दिक अर्थ होता है बच्चे की तरह बैठने वाला आसन। यह योग करते समय शरीर उसी स्थिति मे आ जाता है जिस स्थिति मे […] More

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What is Tadasan, it’s benefits and steps – ताड़ासन क्या है, लाभ और करने का तरीका

What is Tadasan it's benefits and steps - ताड़ासन क्या है लाभ और करने का तरीकाताड़ासन योग की एक मुद्रा है। ताड़ासन योगा शुरु करने का आसन है। जो पहली बार योगा करते हैं उन्हें सबसे पहले ताड़ासन करने के लिए कहा जाता है। ताड़ासन करने के बहुत से फायदे होते हैं। यह पूरे शरीर को लचीला बनाता है। इस योग आसन को करने से आपके शरीर की सूक्ष्म मांसपेशियां […] More

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योग की शुरुआत के लिए सरल आसन – Yoga for Beginners

योग की शुरुआत के लिए सरल आसन - Yoga for Beginnersभारतीय इतिहास मे प्राचीन काल से ही योगा का बहुत महत्व रहा है। योग एक बहुत सरल तरीका है शरीर को स्वस्थ और रोग मुक्त रखने का। योगा के लाभ के कारण धीरे- धीरे इसका महत्व बढ़ता जा रहा है। प्रत्येक इंसान योग करना चाहता है लेकिन इसके कुछ आसन कठिन होते हैं। जिनकी वजह […] More

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Yoga for Weight Loss – फिट रहने के लिए योगा

Yoga for Weight Loss - फिट रहने के लिए योगाआधुनिक युग मे बदलती जीवन शैली, गलत खान- पान, तनाव और बढ़ते प्रदूषण के कारण कई बीमारियां फैल रही हैं। इनमे से ही एक बीमारी है मोटापा। वैसे तो मोटापा कोई बीमारी नही होती लेकिन, इसके कारण कई और समस्याएं हो जाती है। इसलिए हम वजन कम करने के लिए क्या- क्या नही करते जैसे […] More

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शुगर के लिए योगासन, योग से करें इसका निवारण- Diabetes treatment by Yoga

शुगर के लिए योगासन योग से करें इसका निवारण- Diabetes treatment by Yogaअगर आप शुगर की बीमारी से ग्रस्त हैं तो भारतीय संस्कृति “योग” को अपनाएं। मधुमेह यानी शुगर, इसकी शुरुआत हमारे गलत खान- पान और गलत आदतों के कारण होती है। इसके साथ- साथ आनुवांशिकता भी एक कारण हो सकता है। अगर शुगर की शुरुआत होती है। तो इसके लक्षण कुछ इस प्रकार होते हैं। · […] More

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Yoga for Thyroid in Hindi – थायराइड के लिए योगासन

Yoga for Thyroid in Hindi - थायराइड के लिए योगासनथायराइड रोग गले की ग्रंथी को प्रभावित करता है। थायराइड एक बहुत ही गंभीर समस्या है। थायराइड के सबसे आम लक्षणों मे थकान, वजन कम होना, कम ऊर्जा, ठंड, गले की सूजन, दिल की धड़कन का कम या अधिक होना, शुष्क त्वचा, कब्ज या दस्त जैसी परेशानियां शामिल है। कुछ योग आसन से आप थायराइड […] More

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पेट की चर्बी कम करने के लिए योग- Yoga to reduce belly fat

पेट की चर्बी कम करने के लिए योग- Yoga to reduce belly fat in Hindiस्वादिष्ट भोजन खाना सबको पसंद होता है लेकिन अधिक खाने और वसा युक्त भोजन के कारण हमारा पेट निकल आता है। लेकिन खुशी की बात यह है कि आप योग की मदद से पेट को कम कर सकते हैं। हर इंसान जो अपने बड़े पेट और भारी वजन से परेशान है और जो पेट की […] More

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What is Yoga? It’s benefits, rules and types – योग क्या है? योग के लाभ, नियम और प्रकार

Rules types & Benefits of Yoga - योग के नियम प्रकार और लाभWhat is Yoga – योगा क्या है? भारतीय इतिहास मे प्राचीन काल से ही योग का बढ़ा महत्व रहा है। योग सही तरीके से जीने के लिए, स्वस्थ रहने के लिए एक विज्ञान है। अत: योग को दैनिक जीवन मे शामिल किया जाना चाहिए। योग का अर्थ होता है “एकता” यह हमारे जीवन के आत्मिक, […] More

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Tuesday 28 July 2020

Ayurvedic treatment and Ayurvedic medicine- आयुर्वेदीय चिकित्सा एवं आयुर्वेदिक औषधियां

आयुर्वेद के अनुसार कोई भी रोग केवल शारीरिक एवं केवल मानसिक नहीं होता अपितु  यदि शारीरिक रोग हो जाये तो इसका सीधा-सीधा प्रभाव मन पर और यदि मानसिक हो जाये तो इसका सीधा-सीधा प्रभाव शरीर पर निश्‍चित रूप से पड़ता है । इसी कारण आयुर्वेद का एक सफल वैद्य अपने रोगी के केवल रोग के […] More

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Ayurvedic medical industry in India- भारत में आयुर्वेदीय चिकित्सा उद्योग

आयुर्वेदिक उत्पाद एक व्यक्तिगत देखभाल और स्वास्थ्य संबंधी उत्पाद हैं जो औषधीय उपचार प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाते हैं। महिलाओं के शिक्षित होने की दर अधिक होने एवं कामकाजी महिलाओं की संख्‍या में वृद्धि होने कारण तथा ब्‍यूटी प्रोडक्‍ट में लगातार रसायनों के बढ़ते दर के कारण महिलयां व्‍यक्तिगत देखभाल के लिये हर्बल सौदर्य […] More

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Education and Research in Ayurvedic Medicine- आयुर्वेदिक आयुर्विज्ञान की शिक्षा एवं अनुसंधान

किसी भी ज्ञान को व्‍यवहारिक रूप से उपयोगी बनाने के लिये आवश्‍यक है कि उस ज्ञान का शोधन एवं परिक्षण होते रहना चाहिये । उस ज्ञान के विकास के लिये यह भी आवश्‍यक है कि उसे आने वाली पीढ़ी तक इसे पहुँचाया जाये । इसी क्रिया को आज शिक्षा या शिक्षण कहते हैं । चिकित्‍सा […] More

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Monday 27 July 2020

Gram Negative Infection Natural Treatments

The gram negative bacteria are a specific type of bacteria that has unique characteristics. This type of bacteria can cause infections throughout the body. Bacteria live in our bodies but when they are kept at normal levels, then they do not cause any problems. But when there is an imbalance, then the infection can happen. […]

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Esophageal Stricture Treatments

The esophageal stricture is a gradual narrowing of the esophagus which can lead to swallowing difficulties. It is noticed that doctors diagnose the esophageal stricture in about 10% of the patients who have GERD. The GERD is one of the most common causes for the esophageal stricture. We know that GERD is a condition in […]

source https://www.homenaturalcures.com/esophageal-stricture-treatments/

Saturday 25 July 2020

Journey from the original promoter of Ayurveda to the Ayurvedic Institute of today- आयुर्वेद के आदि प्रवर्तक से आज के आयुर्वेदिक संस्थान तक की यात्रा

श्रीमद्भागवत पुराण के साथ-साथ कई अनेक हिन्‍दू धार्मिक ग्रन्‍थों में समुद्रमंथन की चर्चा है । श्रीमद्भागवत के अनुसार इस समुद्रमंथन से साक्षात भगवान बिष्‍णु के अंशांश अवतार हाथों में कलश लिये धनवंतरी प्रगट हुये, जो आयुर्वेद के प्रवर्तक थे ।  महर्षि बाल्‍मीकी ने अपनी कृति रामायण में धनवंतरी को ‘आयेर्वेदमय’ अर्थात आयुर्वेद का साक्षात स्‍वरूप कहा है । इस प्रकार अन्‍येन ग्रंथों की मान्‍यताओं के अनुसार भगवान धनवंतरी को आयुर्वेद का जनक माना जाता है । किन्‍तु आयुर्वेद के आदि प्रवर्तक स्‍वयम्भू ब्रह्मा हैं, जिन्‍होंने इसका सर्वप्रथम उपदेश दक्षप्रजापति को किया था । दक्ष ने इसका ज्ञान अश्विनीकुमारों को दिया, जिनसे देवराज इंद्र द्वारा होते हुये अनेक ऋषियों कश्‍यप, वसिष्‍ठ, अत्रि, भृगु आदि तक पहुँचा ।

आयुर्वेद के इतनी लंबी यात्रा के  सभी बातों को एक आलेख में समेटना संभव नहीं है ।  फिर भी प्रमुख सोपानाें को सम्मिलित कर आयुर्वेद उदृभव से विकास क्रम को संक्षिप्‍त रूप में प्रमखु आचार्य एवं उनके आयुर्वेद के अनुदान को स्‍मरण करते हुये आज किये जा रहे प्रयासों को रेखांकित करने का प्रयास किया जा रहा है ।

Maharshi Kashyap’s Kashnyasamhita– महर्षी कश्‍यप की काश्‍यसंहिता-

महर्षि कश्‍यप का एक प्राचीन ग्रंथ का नाम है ‘काश्‍यप संहिता’ है । जब इस इस ग्रंथ प्रचार कम होने लगा तो ऋचिक मुनी कं पांच वर्षीय पुत्र जीवक ने इसे नये रूप में प्रस्‍तुत किया जिसे ‘वृद्धजीवकीय तंत्र’ कहा गया । इस ग्रंथ में समस्‍त आयुर्वेदीय विषयों का प्रश्‍नोत्‍तररूप में निरूपण किया गया  । बाद में इसी ‘वृद्धजीवकीय तंत्र’ से -अष्‍टांग आयुर्वेद’ की रचना हुई । कलान्‍तर में इसे ही ‘कौमारभृत्‍यतन्‍त्र’ के नाम से जाना गया ।

Waghata Code of Acharya Vagbhat– आचार्य वाग्‍भट की वाग्‍भट संहिता-

आचार्य वाग्‍भट की ‘वाग्‍भट संहिता’ जिसे ‘अष्‍टांगहृदय’ के नाम से भी जाना जाता है कि रचना लगभग 500 ईसापूर्व की माना जाती है । इस ग्रंथ में आयुर्वेद के संपूर्ण विषय को आठ भागों में विभाजित करते औषधि और शल्‍य चिकित्‍सा दोनो का समान रूप से समावेश किया गया है । इस ग्रंथ को शरीर रूपी आयुर्वेद के हृदय के रूप में स्‍वीकार किया गया है ।

Charaka Samhita of Acharya Charaka– आचार्य चरक की चरक संहिता

आचार्य चरक और आयुर्वेद का इतना घनिष्‍ठ संंबंध है कि आज भी ये दोनों नाम एक दूसरे के पूरक लगते हैं । आचार्य चरक आयुर्वेद के मर्मज्ञ थे ।  ऐसा कहा जाता है कि आचार्य चरक न केवल संहिताग्रन्‍थों के प्रणयन में संलग्‍न रहते थे, अपितु वे घूम-घूम कर जहॉं भी रोगी मिलते उनका उपचार किया करते थें ।  उनकी कृति ‘चरक संहिता’ चिकित्‍सा जगत का अत्‍यंत प्रमाणिक एवं प्राचीन ग्रंथ माना जाता है । चरक संहिता को तात्‍कालिक भाषा के अनुसार बहुत सहज एवं सरल भाषा में लिखी गई मानी जाती है । चरक संहिता में सूत्र, निदान, विमान, शरीर, इन्द्रिय, चिकित्‍सा, सिद्धि, और कल्‍प नाम से आठ भाग हैं । इस ग्रंथ के अनुसार तृष्‍णा को रोगों का प्रधान कारण बताया गया है । 

Sushruta Samhita of Acharya Sushruta– आचार्य सुश्रुत की सुश्रुत संहिता

आचार्य सुश्रुत प्राचीन काल के एक उच्‍चकोटि के आयुर्वेदाचार्य एवं शल्‍यचिकित्‍सक थे । जहॉं भगवान धनवंतरी को आयुर्वेद का जनक माना जाता है वहीं आचार्य सुश्रुत को शल्‍यचिकित्‍सा का जनक माना जाता है । सुश्रुत ने ‘सुश्रुतसंहिता’ नामक वृहद ग्रंथ की रचना की जिसे पांच स्‍थान के नाम से सूत्रस्‍थान, निदानस्‍थान, शरीर स्‍थान, चिकित्‍सा स्‍थान और कल्‍पस्‍थान में बांटा गया है । अंत में उत्‍तरतंत्र नाम से परिशिष्‍ट भी जोड़ा गया है । सुश्रुत अपने ग्रंथ में ‘यन्‍त्रशतमेकोत्‍तरम्’  में 100 शल्‍य तंत्र का उल्‍लेख किया है जिसमें शरीर के लगभग सभी अंगों की शल्‍य चिकित्‍सा का वर्णन मिलता है । आचार्य सुश्रुत त्‍वचारोपण, मोतियाबिंद शल्‍य, गर्भ शल्‍य, आदि कई शल्‍यक्रियाओं के विशेषज्ञ थे । आजकल सर्जिकल ऑपरेशन में प्रयुक्‍त उपकरणों का वर्णन ‘सुश्रुत संहिता’ में मिलता है । इस संहिता की रचना लगभग तीसरी सदी में हुई ।

Madhavnidan Samhita of Acharya-Madhava-आचार्य माधव की माधवनिदान संहिता

निदाने माधव: श्रेष्‍ठ:’ अर्थात रोगों के निदान के लिये आचार्य माधव का ग्रंथ ‘माधवनिदान’ श्रेष्‍ठ है । आयुर्वेद के  अनुसार और आज के आधुनिक चिकित्‍सा पद्यति के अनुसार भी उपचार के तीन चरण होते हैं -1. रोगों के कारण को जानना, 2. रोगों के लक्षण को जानना, और 3. रोगी के लिये उपयुक्‍त औषधि का चयन करना इसे ही आयुर्वेद में क्रमश: हेतुज्ञान, लिंगज्ञान एवं औषधज्ञान कहा गया है । इन तीनों में लिंगज्ञान का महत्‍व सबसे ज्‍यादा है क्‍योंकि जब रोग का लक्ष्‍ण ठीक-ठाक जान लेने के पश्‍चात ही उसका उपचार उचित रूप से किया जा सकता है । इसी आवश्‍यकता के आधार पर आचार्य माधव ने एक ग्रंथ की रचना की जिसे ‘माधवनिदान’ के नाम से जाना गया । इस ग्रंथ में  ज्‍वर को प्रधान बतलाते हुये इसे वात, कफ एवं पीत  जनित मानते हुये वातज, पितज, कफज, वातपितज, वातकफज, पितकफज, त्रिदोष और आगन्‍तुज आठ भेद बताये गये हैं । इसके साथ ही इस गंथ में अतिसार, ग्रहणी, अर्श, अग्निमांध क्रिमि, पाण्‍डु, रक्‍तपित्‍त, कामला, राजयक्ष्‍मा,स्‍वरभेद, दाह, उन्‍माद, अपस्‍मार, हृदयरोग,, मुत्ररोग, प्रेमह, उदर, शेथ, गलगण्‍ड, श्‍लीपद विद्रधि आदि अनेक रोगों पर व्‍यापक चर्चा है । इस कृति छठवी सदी का माना जाता है ।

Acharya Shargadhar’s Shargadhar Code– आचार्य शार्ङ्गधर की शार्ङ्गधर संहिता

नाड़ीज्ञान द्वारा रोग-परीक्षण आयुर्वेद की एक विलक्षण विधा है ।  आयुर्वेद में नाड़ीशास्‍त्र का अपना अलग महत्त्व है । नाड़ी शास्त्र के रचनाकार के रूप में महर्षी कणद का नाम आता है । इसी कड़ी में आचार्य शार्ङ्गधर की ‘शार्ङ्गधर संहिता’  विशेष उल्‍लेखनिय है ।  इस ग्रंथ की रचना 12वी सदी में मानी जाती है । इस ग्रंथ में नाड़ी किस प्रकार देखा जाता है ? उससे क्‍या परिणाम निकाले जा सकते हैं ? जैसे प्रश्‍नों का उत्‍र सटिक रूप में दिया गया है । इस ग्रंथ का परिचय ही नाड़ी शास्‍त्र के रूप में स्‍वीकार किया गया है ।

Jeevak Kaumarbritya- जीवक कौमारभृत्य

जीवक कौमारभृत्य को आयुर्वेद का इतिहास पुरुष कहा जाता है । इतिहास में उनके द्वारा चिकित्सा किए जाने की अनेक वर्णन मिलते हैं। संभवत प्रथम मस्तिष्क शल्य क्रिया जीवक कौमारभृत्य नहीं क्या था । इसके संबंध में वर्णन मिलता है की एक नगर सेठ जिनके मस्तिष्क में कीड़े हो गए थे । उनका कई वैद्य ने निरीक्षण किया उपचार किया किंतु ठीक नहीं हो पाया कुछ वैद्य ने उन्हें 5 दिन ही और जीवित रहने तो किसी ने 7 दिनों की जीवन अवधि सेस होने की सूचना दे दी । इसी बीच जीवक कौमारभृत्य ने उसका निरीक्षण किया और उसके मस्तिष्क को काटकर मस्तिष्क से कीड़े बाहर निकाल कर पुनः मस्तिष्क की सिलाई कर दिया और जो रोगी केवल 7 दिन तक जीवित रह सकता था वह 21 दिन के अंदर पुनर्जीवन को प्राप्त किया।

Acharya Bhavprakash’s work Bhavaprakash- आचार्य भावप्रकाश की कृति भावप्रकाश

16वी सदी के आसपास आचार्य भावप्रकाश रचित ग्रंथ आयुर्वेद लघुत्रीय परिगणित है अर्थात इस ग्रंथ में आयुर्वेद के जटिल सिद्धांतों को संक्षेप रूप में प्रस्‍तुत किया गया है । इस ग्रंथ में दिनचर्या, रात्रिचर्या, आहार-विहार, तथा सदाचार को लाभकारी बताया गया है । इस ग्रंथ के अनुसार रोग के दो भेद होते हैं एक कर्मज और दूसरा दोषज । इसमें कर्मज रोगों का कारण दुष्‍कर्म को बताया गया है तथा इसका निदान प्रायश्चित को बताया गया है । दोषज रोग का कारण दिनचर्या, रात्रिचर्या, और आहार-विहार में दोष को बताया गया जिसके कारण वात, पित एवं कफ में असंतुलन के कारण रोग उत्‍पन्‍न होते हैं । इसी आधार पर इसके उपचार कहे गयें हैं ।

Vaidya Chintamani composed by Vallabhacharya- वल्लभाचार्य रचित वैद्य चिंतामणि

16 वीं शताब्दी में वल्लभाचार्य ने वैद्य चिंतामणि नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ का पहचान नाड़ी शास्त्र के रूप में होता है । इसी के समय से पुरुषों के दाएं हाथ एवं महिलाओं के बाएं हाथ का परीक्षण का विधान बना तथा हाथ के अतिरिक्त पैर से भी नाड़ी परीक्षण का इसमें वर्णन मिलता है ।

Vaidya Jeevan composed by Lolimbaraj- लोलिम्बराज रचित वैद्य जीवन

17 वी शताब्दी में लोलिम्बराज ने वेद जीवन नामक ग्रंथ की रचना की इसमें ज्वर, ज्वरातिसार, ग्रहणी, कास-श्वास, आमवात, कामला, स्तन्यदुष्टि, प्रदर, क्षय, व्रण, अम्लपित्त, प्रमेह आदि रोगों तथा वाजीकरण और विविध रसायनों का उल्लेख मिलता है ।

Presently working Ayurveda Research Institute– वर्तमान में कार्यरत आयुर्वेद शोध संस्थान

ऐसा कदापि नहीं है कि आयुर्वेद केवल इतिहास का विषय रह गया हो । आयुर्वेद पर आज भी शोध अनुसंधान कार्य चल रहा है । इस कार्य में भारत के कई संस्थान कार्यरत हैं जो आयुर्वेद शिक्षा एवं चिकित्सा को आगे बढ़ा रहे हैं । इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार है-

1. अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली- यह देश का आधुनिक शिक्षा एवं रिसर्च सेंटर है जो 2017 से कार्य कर रहा है इसके साथ 200 बिस्तरों वाला सर्व सुविधा युक्त अस्पताल भी संलग्न है ।

2. राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान जयपुर राजस्थान-

इसकी स्थापना 1976 में की गई थी। यहां आयुर्वेद पर डिप्लोमा से लेकर स्नातक और पीएचडी तक का कोर्स कराया जाता है।

3. गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय जामनगर गुजरात – आयुर्वेद का वैश्विक प्रचार-प्रसार इस संस्थान का मिशन है. यहां यूरोप, अफ्रीका और सार्क देशों के छात्र भी पढ़ते हैं । 

4. आयुर्वेद संकाय चिकित्सा विज्ञान हिंदू विश्वविद्यालय बनारस-1922 से इस विद्यालय में आयुर्वेद की शिक्षा दी जा रही है । यह संस्थान पुरानी चिकित्सा पद्धति और आधुनिक चिकित्सा पद्धति का बेजोड़ मेल प्रदर्शित करने के लिए जाना जाता है ।

5. राजकीय आयुर्वेद कॉलेज तिरुअनंतपुरम केरल-इसकी स्थापना 1889 में की गई थी इस कॉलेज में आयुर्वेद के 14 विभाग कार्यरत है जिसमें विद्यार्थियों को आयुर्वेद की शिक्षा दी जाती है ।

6. डीएमके आयुर्वेद कॉलेज केएलई यूनिवर्सिटी कर्नाटक- 

यहां भारती मेडिसिन पद्धतियों का विकास एवं प्रसार किया जाता है । आयुर्वेद के क्षेत्र में अनेक शोध कार्य यहां किए जाते हैं ।

7. पोदार आयुर्वेद कॉलेज वर्ली मुंबई-

इसकी स्थापना 1941 में की गई थी जहां वर्तमान में विद्यार्थियों को स्नातक से लेकर डॉक्टर तक की डिग्री दी जाती है यहां का हर्बल गार्डन आयुर्वेद के शोधार्थियों के लिए उपयोगी है ।

इन संस्थानों के अतिरिक्त देश के प्रायः हर राज्य में या तो आयुर्वेद कॉलेज है अथवा आयुर्वेद यूनिवर्सिटी । लाखों ग्रामों में आयुर्वेद चिकित्सा  केंद्र भी संचालित है

इस प्रकार पूरे घटनाक्रम को देखने के बाद यह कहा जा सकता है की आयुर्वेद भारत की मिट्टी में सम्मिलित है जिसे अलग नहीं किया जा सकता । आज भी करोड़ों लोग आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को या तो आयुर्वेद वैद्य की सहायता से अथवा घरेलू नुस्खे उपचार के सहायता से प्रयोग में ला रहे हैं । आधुनिक आयुर्वेद संस्थानों के कार्यरत होने से इस पर विभिन्न वैज्ञानिक शोध हो रहे हैं जिससे आयुर्वेद का भविष्य उज्जवल दिखाई देता है।

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Friday 24 July 2020

Chaar Minar, Hyderabad चार मीनार, हैदराबाद

1591 में निर्मित चारमीनार , भारत के हैदराबाद, तेलंगाना में स्थित एक  मस्जिद है। मील का पत्थर विश्व स्तर पर हैदराबाद के प्रतीक के रूप में जाना जाता है और भारत में सबसे अधिक मान्यता प्राप्त संरचनाओं में सूचीबद्ध है। तेलंगाना राज्य के लिए इसे आधिकारिक रूप से तेलंगाना के प्रतीक के रूप में भी शामिल किया गया है। [३] चारमीनार के लंबे इतिहास में 400 से अधिक वर्षों के लिए इसकी शीर्ष मंजिल पर एक मस्जिद का अस्तित्व शामिल है। जबकि ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से दोनों महत्वपूर्ण हैं, यह संरचना के आसपास के लोकप्रिय और व्यस्त स्थानीय बाजारों के लिए भी जाना जाता है, और हैदराबाद में सबसे अधिक बार आने वाले पर्यटक आकर्षणों में से एक बन गया है। चारमीनार ईद-उल-अधा और ईद अल-फितर जैसे कई त्यौहार समारोह का स्थल भी है।

History of Chaar Minar – चारमीनार का इतिहास 

कुतुब शाही वंश के पांचवें शासक मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने 1591 में गोलकुंडा से अपनी राजधानी हैदराबाद के नवगठित शहर में स्थानांतरित करने के बाद चारमीनार का निर्माण किया।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), संरचना के वर्तमान कार्यवाहक, ने अपने रिकॉर्ड में उल्लेख किया है, ” चारमीनार का निर्माण जिस उद्देश्य के लिए किया गया था, उसके संबंध में विभिन्न सिद्धांत हैं। हालांकि, यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि शहर के केंद्र में चारमीनार बनाया गया था, हैजा, एक घातक बीमारी जो उस समय फैली हुई थी, के उन्मूलन के लिए “,। 17 वीं शताब्दी के एक फ्रांसीसी यात्री ज्यां डे थिएवनोट के अनुसार, जिसका वर्णन उपलब्ध फ़ारसी ग्रंथों के साथ पूरक था, चारमीनार का निर्माण वर्ष 1591 ईस्वी में दूसरे इस्लामी सहस्राब्दी वर्ष (1000 एएच) की शुरुआत के उपलक्ष्य में किया गया था। इस आयोजन को इस्लामी दुनिया में दूर-दूर तक मनाया जाता था, इस प्रकार कुतुब शाह ने इस शहर का निर्माण करने के लिए हैदराबाद शहर की स्थापना की और इसे इस इमारत के निर्माण के साथ मनाने का प्रयास किया। पूर्व के आर्क डी ट्रायम्फ के रूप में कहा जाता है।

चारमीनार का निर्माण ऐतिहासिक व्यापार मार्ग के चौराहे पर किया गया था, जो मशेरबैड के बाजारों को मैकही मार्केट के बंदरगाह शहर से जोड़ता है।हैदराबाद के पुराने शहर को चारमीनार के साथ इसके केंद्र के रूप में डिजाइन किया गया था। शहर चार अलग-अलग चौपाइयों और कक्षों में चारमीनार के आसपास फैला हुआ था, जो स्थापित बस्तियों के अनुसार अलग थे। चारमीनार के उत्तर में चार कामन, या चार द्वार हैं, जो कार्डिनल दिशा में निर्मित हैं।

Structure of Chaar Minar – चार मीनार की इमारत 

चारमीनार मस्जिद एक वर्गाकार ढाँचा है जिसमें प्रत्येक पक्ष 20 मीटर (लगभग 66 फीट) लंबा है। चार पक्षों में से प्रत्येक के पास चार भव्य मेहराबों में से एक है, प्रत्येक में एक मौलिक बिंदु का सामना करना पड़ता है जो इसके सामने सड़क पर सीधे खुलता है। प्रत्येक कोने पर एक बाहरी आकार, 56 मीटर ऊंचा (लगभग 184 फीट) मीनार है, जिसमें एक डबल बालकनी है। प्रत्येक मीनार को आधार पर चमकदार, पंखुड़ी जैसे डिजाइनों के साथ एक शानदार गुंबद का ताज पहनाया जाता है। ताजमहल की मीनारों के विपरीत, चारमीनार की चार सुगंधित मीनारें मुख्य संरचना में निर्मित हैं। ऊपरी मंजिल तक पहुंचने के लिए 149 घुमावदार कदम हैं। संरचना को प्लास्टर सजावट और बालुस्ट्रैड्स और बालकनियों की व्यवस्था के लिए भी जाना जाता है।

एक मस्जिद खुली छत के पश्चिमी छोर पर स्थित है। छत का शेष भाग कुतुब शाही समय के दौरान शाही दरबार के रूप में कार्य करता था। वास्तविक मस्जिद चार मंजिला संरचना के शीर्ष तल पर है। एक तिजोरी जो गुंबद की तरह अंदर से दिखाई देती है, चारमीनार के भीतर दो दीर्घाओं का समर्थन करती है, एक के ऊपर एक। उन लोगों के ऊपर एक छत है जो एक छत के रूप में कार्य करता है जो पत्थर की बालकनी से घिरा है। शुक्रवार की प्रार्थनाओं के लिए अधिक लोगों को समायोजित करने के लिए मुख्य गैलरी में 45 खुले प्रार्थना स्थल हैं जिनमें एक बड़ी खुली जगह है।

Influence from Chaar Minar – चार मीनार से प्रभावित

2007 में, पाकिस्तान में रहने वाले हैदराबादी मुसलमानों ने कराची के बहादराबाद के मुख्य चौराहे पर चारमीनार की एक छोटी-सी चौड़ी अर्ध प्रतिकृति का निर्माण किया। लिंड्ट चॉकलेट बनाने वाले एडेलबर्ट बाउचर ने 50 किलोग्राम चॉकलेट में से चारमीनार का एक छोटा मॉडल बनाया। चारमीनार एक्सप्रेस चारमीनार के नाम से एक एक्सप्रेस ट्रेन है, जो हैदराबाद और चेन्नई के बीच चलती है। चारमीनार, सिक्किम और बैंकनोटों पर भी दिखाई देता है, जो हैदराबादी राज्य की मुद्रा है। हैदराबाद शहर के साथ-साथ तेलंगाना राज्य के एक आइकन के रूप में, संरचना तेलंगाना के प्रतीक पर भी दिखाई देती है, साथ ही काकतीय काल थोरानम।

Pedestrianization Project – पैदल चलने की परियोजना

ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के साथ साझेदारी में आंध्र प्रदेश की तत्कालीन संयुक्त सरकार द्वारा उन्हें “चारमीनार पैदल यात्री परियोजना” शुरू की गई थी। इस परियोजना को 2006 में 35 करोड़ रुपये के निवेश के साथ शुरू किया गया था। हालांकि, इस परियोजना में तेलंगाना आंदोलन, फेरीवालों द्वारा अवैध अतिक्रमण, वाहनों के आवागमन और अवैध सड़क विक्रेताओं जैसे विभिन्न कारकों के कारण दिन की रोशनी नहीं देखी गई। बाद में जनवरी 2017 के दौरान, तेलंगाना की नई सरकार ने स्मारक को पर्यावरण के अनुकूल पर्यटन और विरासत स्थल के रूप में विकसित करने में व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए परियोजना को संभालने के लिए 14 सदस्यीय फ्रांसीसी प्रतिनिधिमंडल पेश किया।

Temple Structure – मंदिर की इमारत

भाग्यलक्ष्मी मंदिर नामक एक मंदिर चारमीनार के आधार पर स्थित है। चारमीनार का प्रबंधन करने वाला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मंदिर की संरचना को एक अनधिकृत निर्माण के रूप में घोषित किया है। हैदराबाद उच्च न्यायालय ने मंदिर के आगे विस्तार को रोक दिया है। जबकि वर्तमान में मंदिर की उत्पत्ति विवादित है, 1960 के दशक में मूर्ति को खड़ा करने वाली वर्तमान संरचना। 2012 में, द हिंदू अखबार ने एक पुरानी तस्वीर प्रकाशित की जिसमें दिखाया गया था कि मंदिर का ढांचा कभी अस्तित्व में नहीं था। द हिंदू ने तस्वीरों की प्रामाणिकता का दावा करते हुए एक नोट भी जारी किया, और स्पष्ट रूप से कहा कि 1957 और 1962 में ली गई तस्वीरों में मंदिर की कोई संरचना नहीं थी। इसके अलावा, उसने ऐसी तस्वीरें दिखाईं जो इस बात का सबूत देती हैं कि मंदिर एक हालिया संरचना है – एक मंदिर संरचना 1990 और 1994 में ली गई तस्वीरों में देखा जा सकता है। इसके अलावा, 1986 में ली गई एक तस्वीर में एक मंदिर दिखाई देता है, जिसे आगा खान विज़ुअल आर्काइव, एमआईटी लाइब्रेरीज़ के संग्रह, संयुक्त राज्य अमेरिका में रखा गया है, लेकिन पहले वाले में नहीं।

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Golden Temple, Amritsar- स्वर्ण मंदिर , अमृतसर

दरबार साहिब, जिसका अर्थ है “अतिरंजित दरबार”  या हरमंदिर साहिब, जिसका अर्थ है “भगवान का निवास” , जिसे स्वर्ण के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर, अमृतसर, पंजाब, भारत के शहर में स्थित एक गुरुद्वारा है। यह सिख धर्म का प्रमुख आध्यात्मिक स्थल है। गुरुद्वारा एक मानव निर्मित सरोवर के चारों ओर बनाया गया है, जिसे 1577 में चौथे सिख गुरु, गुरु राम दास ने पूरा किया था। सिख धर्म के पांचवें गुरु, गुरु अर्जन ने, लाहौर के एक मुस्लिम पीर, मीर मियां मोहम्मद से 1589 में इसकी आधारशिला रखने का अनुरोध किया था। 1604 में, गुरु अर्जन ने हरमंदिर साहिब में आदि ग्रंथ की एक प्रति रखी, जिसे एथ सथ तीर्थ (68 तीर्थों का तीर्थ) कहा जाता है।

History of Golden Temple – स्वर्ण मंदिर का इतिहास

सिख ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, अमृतसर बनने वाली भूमि और हरिमंदर साहिब का घर गुरु अमर दास – सिख परंपरा का तीसरा गुरु था। इसे तब गुरु दा चाक कहा जाता था, जब उन्होंने अपने शिष्य राम दास को एक नया शहर शुरू करने के लिए जमीन की तलाश करने के लिए कहा था, जो कि एक मानव निर्मित सरोवर था।

गुरु राम दास ने स्थल के लिए भूमि का अधिग्रहण किया। कहानियों के दो संस्करण मौजूद हैं कि उन्होंने इस भूमि का अधिग्रहण कैसे किया। एक में, गजेटियर रिकॉर्ड के आधार पर, तुंग गांव के मालिकों से 700 रुपये के सिख दान के साथ जमीन खरीदी गई थी। एक अन्य संस्करण में, सम्राट अकबर ने गुरु राम दास की पत्नी को भूमि दान करने के लिए कहा है।

1581 में, गुरु अर्जन ने गुरुद्वारे के निर्माण की पहल की। ​​निर्माण के दौरान सरोवर को खाली और सूखा रखा गया था। हरमंदिर साहिब के पहले संस्करण को पूरा करने में 8 साल लग गए। गुरु अर्जन ने गुरु से मिलने के लिए परिसर में प्रवेश करने से पहले विनम्रता और किसी के अहंकार को कम करने की आवश्यकता पर जोर देने के लिए शहर की तुलना में निचले स्तर पर एक मंदिर की योजना बनाई।

गुरु अर्जन के बढ़ते प्रभाव और सफलता ने मुगल साम्राज्य का ध्यान आकर्षित किया। गुरु अर्जन को मुग़ल बादशाह जहाँगीर के आदेश के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा गया। उन्होंने इनकार कर दिया, उन्हे 1606 में प्रताड़ित किया और मार डाला गया। गुरु अर्जन के पुत्र और उत्तराधिकारी गुरु हरगोबिंद ने उत्पीड़न से बचने और सिख पंथ को बचाने के लिए अमृतसर छोड़ दिया और शिवालिक पहाड़ियों में चले गए। 18 वीं शताब्दी में, गुरु गोबिंद सिंह और उनके नए स्थापित खालसा सिख वापस आए और इसे मुक्त करने के लिए संघर्ष किया। ]स्वर्ण मंदिर को मुगल शासकों और अफगान सुल्तानों ने सिख आस्था के केंद्र के रूप में देखा था और यह उत्पीड़न का मुख्य लक्ष्य बना रहा।

मंदिर का विनाश भारतीय सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान किया था। यह अमृतसर, पंजाब में हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) परिसर की इमारतों से आतंकवादी सिख नेता संत जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके अनुयायियों को हटाने के लिए 1 से 8 जून 1984 के बीच की गई एक भारतीय सैन्य कार्रवाई का कोडनेम था। हमले की शुरूआत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ हुई। जुलाई 1982 में, सिख राजनीतिक दल अकाली दल के अध्यक्ष हरचंद सिंह लोंगोवाल ने भिंडरावाले को गिरफ्तारी से बचने के लिए स्वर्ण मंदिर परिसर में निवास करने के लिए आमंत्रित किया था। सरकार ने दावा किया कि भिंडरावाले ने बाद में पवित्र मंदिर परिसर को एक शस्त्रागार और मुख्यालय बना दिया।

मंदिर परिसर में सैन्य कार्रवाई की आलोचना दुनिया भर के सिखों ने की, जिन्होंने इसे सिख धर्म पर हमले के रूप में व्याख्या की। सेना के कई सिख सैनिकों ने अपनी इकाइयां छोड़ दीं, कई सिखों ने नागरिक प्रशासनिक कार्यालय से इस्तीफा दे दिया और भारत सरकार से प्राप्त पुरस्कार लौटा दिए। ऑपरेशन के पांच महीने बाद, 31 अक्टूबर 1984 को, इंदिरा गांधी की हत्या उनके दो सिख अंगरक्षकों, सतवंत सिंह और बेअंत सिंह द्वारा बदले की कार्रवाई में की गई थी। 1984 की सिख विरोधी दंगों की वजह से गांधी की मृत्यु पर सार्वजनिक रूप से दिल्ली में 3,000 से अधिक सिखों की हत्याएं हुईं। नवंबर, 1984 के पहले सप्ताह के दौरान मारे गए सिखों की संख्या के अनौपचारिक अनुमान उत्तर और मध्य भारत के कई शहरों में मारे गए 40,000 से अधिक हैं। कई मानवाधिकार संगठनों ने आरोप लगाया है कि यह सिख विरोधी हिंसा आईएनसी के राजनीतिक नेताओं द्वारा प्रायोजित, नियोजित और निष्पादित की गई थी।

Architecture of Golden Temple – स्वर्ण मंदिर की वास्तु कला 

स्वर्ण मंदिर की वास्तुकला भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित विभिन्न स्थापत्य प्रथाओं को दर्शाती है, क्योंकि मंदिर के विभिन्न पुनरावृत्तियों को फिर से बनाया गया और पुनर्स्थापित किया गया। मंदिर का वर्णन इयान केर और अन्य विद्वानों ने इंडो-इस्लामिक मुगल और हिंदू राजपूत वास्तुकला के मिश्रण के रूप में किया है। 

गर्भगृह 12.25 x 12.25 मीटर का दो-मंजिला है  और  ऊपर एक सोने का गुंबद है। इस गर्भगृह में एक संगमरमर का मंच है जो 19.7 x 19.7 मीटर का वर्ग है। यह लगभग एक वर्ग (154.5 x 148.5) सरोवर के अंदर  है जिसे अमृत या अमृतसरोवर कहा जाता है। सरोवर 5.1 मीटर गहरा है और एक 3.7 मीटर चौड़े सरकमफेरेंस वाले संगमरमर के मार्ग से घिरा है । गर्भगृह एक मंच से एक उपमार्ग से जुड़ा हुआ है और उपमार्ग में प्रवेश द्वार को दर्शनशाला (दर्शन द्वार से) कहा जाता है। जो लोग कुंड में डुबकी लगाना चाहते हैं, उनके लिए मंदिर आधा हेक्सागोनल आश्रय और हर की पौड़ी को पवित्र कदम प्रदान करता है। माना जाता है कि इस कुंड में स्नान करने से कई सिखों को पुन: शक्ति प्राप्त होती है, जो किसी के कर्म को शुद्ध करता है।

गर्भगृह के चारों ओर की दीवारों के संगमरमर के ऊपर पुष्प डिजाइन बने हुए हैं। मेहराब में स्वर्ण अक्षरों में सिख ग्रंथ के छंद शामिल हैं। भित्तिचित्र भारतीय परंपरा का पालन करते हैं और इसमें विशुद्ध रूप से ज्यामितीय होने के बजाय पशु, पक्षी और प्रकृति के रूपांकनों को शामिल किया जाता है। सीढ़ी की दीवारों में सिख गुरुओं की भित्ति चित्र हैं जैसे कि बाज़ गुरु गोबिंद सिंह को घोड़े पर सवार करके ले जाते हैं।

 Golden Temple and Jallianwala Bagh Massacre –  स्वर्ण मंदिर और जलियाँवाला बाग काण्ड 

परंपरा के अनुसार, 1919 में बैसाखी का त्यौहार मनाने के लिए स्वर्ण सभी सिख मंदिर में एकत्रित हुए। उनकी यात्रा के बाद, कई लोग रोलेट एक्ट का विरोध करने वाले और औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार की अन्य नीतियों का विरोध करने वाले वक्ताओं को सुनने के लिए इसके आगे जलियांवाला बाग चले गए। एक बड़ी भीड़ जमा हो गई थी, जब ब्रिटिश जनरल रेजिनाल्ड डायर ने अपने सैनिकों को जलियांवाला बाग को घेरने का आदेश दिया, तब असैनिक भीड़ में आग लगा दी। सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। नरसंहार ने पूरे भारत में औपनिवेशिक शासन के विरोध को मजबूत किया। इसने बड़े पैमाने पर अहिंसक विरोध शुरू कर दिया। विरोध प्रदर्शनों ने ब्रिटिश सरकार पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) नामक एक निर्वाचित संगठन को स्वर्ण मंदिर के प्रबंधन और खजाने पर नियंत्रण स्थानांतरित करने का दबाव डाला। 

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Amer Quila, Jaipur आमेर किला, जयपुर

आमेर किला या अंबर किला आमेर, राजस्थान, भारत में स्थित एक किला है। आमेर, राजस्थान की राजधानी जयपुर से 11 किलोमीटर दूर स्थित 4 वर्ग किलोमीटर का एक शहर है। आमेर और अंबर किले का शहर मूल रूप से मीनाओं द्वारा बनाया गया था, और बाद में इस पर राजा मान सिंह प्रथम का शासन था। यह एक पहाड़ी पर स्थित है और जयपुर का प्रमुख पर्यटक आकर्षण है। आमेर किला अपने कलात्मक शैली तत्वों के लिए जाना जाता है। अपने विशाल प्राचीर और द्वारों और सिलबट्टे रास्तों की श्रृंखला के साथ, किला माओटा झील, से दिखता है जो आमेर पैलेस के लिए पानी का मुख्य स्रोत है।

Geography of Amer Quila – आमेर किले की जियोग्राफी

आमेर पैलेस एक पहाड़ी पहाड़ी क्षेत्र पर स्थित है जो राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर आमेर शहर के पास माटा झील में मिलती है। महल राष्ट्रीय राजमार्ग 11C से दिल्ली के पास है। एक संकीर्ण 4 वाइड सड़क प्रवेश द्वार तक जाती है, जिसे किले के सूरज पोल के रूप में जाना जाता है। अब पर्यटकों के लिए हाथी की सवारी करने के बजाय किले तक जीप की सवारी करना अधिक नैतिक माना जाता है।

History of Amer Quila – आमेर किले का इतिहास

आमेर में बस्ती की स्थापना 967 ईस्वी में मीनाओं के चंदा वंश के शासक राजा एलन सिंह ने की थी। आमेर किला, जैसा कि अब खड़ा है, आमेर के कछवाहा राजा, राजा मान सिंह के शासनकाल के दौरान इस पहले के ढांचे के अवशेषों पर बनाया गया था। उनके वंशज जय सिंह प्रथम द्वारा संरचना का पूरी तरह से विस्तार किया गया था। बाद में भी, आमेर किले ने अगले 150 वर्षों में लगातार शासकों द्वारा सुधार और परिवर्धन किया, जब तक कि कछवाहों ने 1727 में सवाई जय सिंह द्वितीय के समय में अपनी राजधानी जयपुर स्थानांतरित नहीं की। 

पहला राजपूत ढांचा राजा काकील देव द्वारा शुरू किया गया था जब राजस्थान के वर्तमान जयगढ़ किले की साइट पर 1036 में अंबर उनकी राजधानी बनी थी। 1600 के दशक में राजा मान सिंह I के शासनकाल में अम्बर की कई वर्तमान इमारतों का निर्माण या विस्तार किया गया था। मुख्य भवन में राजस्थान के अंबर पैलेस में दीवान-ए-खास और मिर्जा राजा जय सिंह प्रथम द्वारा निर्मित गणेश पोल है। 

वर्तमान आमेर पैलेस 16 वीं शताब्दी के अंत में बनाया गया था, जो कि शासकों के पहले से मौजूद घर का एक बड़ा महल था। पुराने महल को कदीमी महल (प्राचीन के लिए फारसी) के रूप में जाना जाता है, जिसे भारत में सबसे पुराना जीवित महल कहा जाता है। यह प्राचीन महल आमेर पैलेस के पीछे घाटी में स्थित है।

Layout of Amer Quila – आमेर किले का लेआउट

पैलेस को छह अलग-अलग लेकिन मुख्य खंडों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक में प्रवेश द्वार और आंगन हैं। मुख्य प्रवेश द्वार सूरज पोल (सूर्य द्वार) के माध्यम से है जो पहले मुख्य प्रांगण की ओर जाता है। यह वह जगह थी जहाँ सेनाएँ युद्ध से लौटने पर अपने युद्ध के इनाम के साथ विजय परेड आयोजित करती थीं, जिसे जालीदार खिड़कियों के माध्यम से शाही परिवार की महिलाबोल भी देखा जाता था।

First Courtyard – पहला आँगन 

जलेबी चौक से एक प्रभावशाली सीढ़ी मुख्य महल के मैदान में जाती है। यहाँ, सीढ़ी के सीढ़ियों के दाईं ओर प्रवेश द्वार पर सिल्ला देवी मंदिर है जहाँ राजपूत महाराजाओं ने पूजा की थी, जो महाराजा मानसिंह के साथ 1980 के दशक तक शुरू हुई थी, जब पशु बलि अनुष्ठान शाही द्वारा किया जाता था। रुक गया था। 

गणेश द्वार, जिसका नाम हिंदू भगवान भगवान गणेश के नाम पर रखा गया है, जो जीवन की सभी बाधाओं को दूर करता है, महाराजाओं के निजी महलों में प्रवेश है। यह एक तीन-स्तरीय संरचना है जिसमें कई भित्ति चित्र हैं जो मिर्जा राजा जय सिंह (1621-1627) के आदेश पर बनाए गए थे। इस द्वार के ऊपर सुहाग मंदिर है जहाँ शाही परिवार की महिलाएँ दीवान-ए-आम में जालीदार संगमरमर की खिड़कियों के माध्यम से नामक समारोह देखती थीं।

Second Couryard – दूसरा आँगन

दूसरा आंगन, प्रथम स्तर के आंगन की मुख्य सीढ़ी तक, दीवान-ए-आम या सार्वजनिक प्रेक्षागृह है। स्तंभों की एक डबल पंक्ति के साथ निर्मित, दीवान-ए-आम 27 उपनिवेशों वाला एक उठाया हुआ मंच है, जिनमें से प्रत्येक को हाथी के आकार की राजधानी के साथ रखा गया है, जिसके ऊपर गैलरी हैं। जैसा कि नाम से पता चलता है, राजा (राजा) ने जनता से याचिकाएं सुनने और प्राप्त करने के लिए यहां दर्शकों को रखा।

Third Courtyard – तीसरा आँगन 

तीसरा प्रांगण वह जगह है जहाँ महाराजा, उनके परिवार और परिचारक के निजी क्वार्टर स्थित थे। इस आंगन में गणेश पोल या गणेश गेट के माध्यम से प्रवेश किया जाता है, जो मोज़ाइक और मूर्तियों से सुशोभित है। आंगन में दो इमारतें हैं, एक के विपरीत एक, मुगल गार्डन के फैशन में रखी गई एक बगीचे से अलग है। प्रवेश द्वार के बाईं ओर की इमारत को जय मंदिर कहा जाता है, जो कांच के पैनल और बहु-मिरर छत के साथ उत्कृष्ट रूप से सुशोभित है। दर्पण उत्तल आकार के होते हैं और रंगीन पन्नी और पेंट के साथ डिज़ाइन किए जाते हैं जो उस समय मोमबत्ती की रोशनी में चमकदार होते थे जब यह उपयोग में था। शीश महल (दर्पण महल) के रूप में भी जाना जाता है, दर्पण मोज़ाइक और रंगीन चश्मा “टिमटिमाती मोमबत्ती की रोशनी में चमकता हुआ गहना बॉक्स” था।

Fourth Courtyard – चौथा आँगन 

चौथा आंगन वह है जहाँ जनाना (शाही परिवार की महिलाएँ, जिसमें रखैल या मालकिन भी शामिल हैं) रहती थीं। इस प्रांगण में कई लिविंग रूम हैं, जहाँ रानियाँ निवास करती थीं और जिन्हें राजा द्वारा उनकी पसंद के बिना यह पता लगाया जाता था कि वह किस रानी से मिलने आ रही हैं, क्योंकि सभी कमरे एक सामान्य गलियारे में खुलते हैं।

इस आंगन के दक्षिण में मान सिंह I का महल है, जो महल के किले का सबसे पुराना हिस्सा है। [५] महल को बनने में 25 साल लगे और राजा मान सिंह I (1589-1614) के शासनकाल में 1599 में पूरा हुआ। यह मुख्य महल है। महल के मध्य प्रांगण में स्तंभित बारादरी या मंडप है; फ्रेस्को और रंगीन टाइलें जमीन और ऊपरी मंजिलों पर कमरों को सजाती हैं। इस मंडप (जिसका इस्तेमाल गोपनीयता के लिए किया जाता था) को महारानी (शाही परिवार की रानियों) ने सभा स्थल के रूप में इस्तेमाल किया था। इस मंडप के सभी किनारे खुले बालकनियों वाले कई छोटे कमरों से जुड़े हैं। इस महल से निकलने के कारण आमेर शहर, कई मंदिरों, महलनुमा घरों और मस्जिदों के साथ एक विरासत शहर बन जाता है।

Conservation of Amer Quila – आमेर किले का संगरक्षण

जून 2013 के दौरान में विश्व धरोहर समिति की 37 वीं बैठक के दौरान राजस्थान के छह किलों, अर्थात्, अंबर किला, चित्तौड़ किला, गागरोन किला, जैसलमेर किला, कुंभलगढ़ और रणथंभौर किला को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल किया गया था। आमेर डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी द्वारा 40 करोड़ रुपये की लागत से आमेर पैलेस मैदान में संरक्षण कार्य किए गए हैं। हालाँकि, ये नवीनीकरण कार्य प्राचीन संरचनाओं की ऐतिहासिकता और स्थापत्य सुविधाओं को बनाए रखने और उनकी उपयुक्तता के संबंध में गहन बहस और आलोचना का विषय रहे हैं। एक और मुद्दा जो उठाया गया है वह है जगह का व्यावसायीकरण।

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Machu Picchu माचू पिचू

माचू पिचू एक 15 वीं सदी का पेरू के सम्राट, इंका, का गढ़ है, जो दक्षिणी पेरू के पूर्वी कॉर्डिलेरा में स्थित है, जो 2,430 मीटर (7,970 फीट) की पहाड़ी पर स्थित है। यह कुस्को क्षेत्र, उरुबाम्बा प्रांत, माचुपिचू जिला पवित्र घाटी के ऊपर स्थित है, जो कुज़्को के उत्तर-पश्चिम में , 80 किलोमीटर पर है। उरुबाम्बा नदी इसे पार करती है, कॉर्डिलेरा के माध्यम से काटती है और उष्णकटिबंधीय पहाड़ी जलवायु के साथ एक घाटी बनाती है।

History of Machu Picchu – माचू पिचू का इतिहास 

माना जाता है कि माचू पिच्चू ,1450-1460 में बनाया गया था। हालांकि माचू पिचू को एक “शाही” संपत्ति माना जाता है, आश्चर्यजनक रूप से, इसे उत्तराधिकार की रेखा में पारित नहीं किया गया होगा। बल्कि इसे त्याग ने से पहले, 80 साल के लिए इस्तेमाल किया गया था। 

Daily life in Machu Picchu – माचू पिचू की रोज़ाना की ज़िन्दगी 

एक शाही संपत्ति के रूप में इसके उपयोग के दौरान, यह अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 750 लोग वहां रहते थे, अधिकांश सहायक कर्मचारी के रूप में सेवा करते थे और वहां स्थायी रूप से रहते थे। हालांकि ये संपत्ति पचैकटेक की थी, धार्मिक विशेषज्ञ और अस्थायी विशेष कार्यकर्ता भी वहाँ रहते थे। कठोर मौसम के दौरान, लगभग सौ कर्मचारी नौकरों को निकाल दिया और कुछ धार्मिक विशेषज्ञों ने अकेले रखरखाव पर ध्यान केंद्रित किया।

Agriculture in Machu Picchu – माचू पिचू  में कृषि

माचू पिच्चू में की जाने वाली अधिकांश खेती अपने सैकड़ों मानव निर्मित छतों पर की गई थी। ये छज्जे काफी अच्छे ढंग से काम करते थे, जो अच्छी जल निकासी और मिट्टी की उर्वरता सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए थे, जबकि पहाड़ को कटाव और भूस्खलन से भी बचाते थे। हालाँकि, छत सही नहीं थे, क्योंकि भूमि के अध्ययन से पता चलता है कि माचू पिचू के निर्माण के दौरान भूस्खलन हुआ था। अभी भी दृश्यमान वे स्थान हैं जहां भूस्खलन द्वारा छतों को स्थानांतरित किया गया था और फिर इन्का द्वारा सही किया गया था क्योंकि वे क्षेत्र के चारों ओर निर्माण करना जारी रखते थे।

Encounters of Machu Picchu – माचू पिचू की खोज 

भले ही माचू पिच्चू कुस्को में इंका राजधानी से केवल 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था, स्पेनिश इसे कभी नहीं ढून्ढ पाए और इसलिए इसे लूट या नष्ट नहीं किया। विजयकर्ताओं के पास पिच्चो नामक स्थान के नोट थे, हालांकि स्पेनिश यात्रा का कोई भी रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। अन्य स्थानों के विपरीत, अक्सर विजय प्राप्त करने वाले पवित्र चट्टानें माचू पिचू से अछूती रहती हैं।

1911 में अमेरिकी इतिहासकार और खोजकर्ता हिरम बिंघम ने पुरानी इंका राजधानी की तलाश में इस क्षेत्र की यात्रा की और एक ग्रामीण, मेल्चोर आर्टेगा ने इसका नेतृत्व किया। हालांकि बिंघम खंडहरों की यात्रा करने वाले पहले व्यक्ति नहीं थे, उन्हें वैज्ञानिक खोजकर्ता माना जाता था जो माचू पिचू को अंतरराष्ट्रीय ध्यान में लाते थे। बिंघम ने 1912 में एक और अभियान का आयोजन किया जिसमें प्रमुख समाशोधन और उत्खनन किया गया।

1983 में, यूनेस्को ने माचू पिच्चू को एक विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया, इसे “वास्तुकला की एक पूर्ण कृति और इंका सभ्यता का एक अनूठा प्रमाण” के रूप में वर्णित किया।

First American expedition – पहला अमेरिकी अभियान 

1909 में, सैंटियागो में पैन-अमेरिकन साइंटिफिक कांग्रेस से लौटते हुए, बिंघम ने पेरू की यात्रा की और उन्हें अपिरिमैक घाटी में चोइक्क्विराउ में इंका खंडहरों का पता लगाने के लिए आमंत्रित किया गया। इन्का राजधानी की खोज के लिए उन्होंने 1911 में येल पेरूवियन अभियान का आयोजन किया, जिसे विटकोस शहर माना जाता था। उन्होंने लीमा के प्रमुख इतिहासकारों में से एक कार्लोस रोमेरो से सलाह ली, जिन्होंने उन्हें सहायक संदर्भ और ऑगस्टोन डे ला कैलाचा के क्रॉनिकल ऑफ ऑगस्टीनियन को दिखाया। कुस्को में फिर से, बिंघम ने प्लांटर्स से कैलंका द्वारा वर्णित स्थानों के बारे में पूछा, खासकर उरुबाम्बा नदी के किनारे के बारे में ।

खंडहर ज्यादातर वनस्पति और कृषि उद्यान के रूप में किसानों द्वारा उपयोग किए जाने वाले क्लीयरिंग को छोड़कर वनस्पति से आच्छादित थे। वनस्पति के कारण, बिंघम साइट की पूरी हद तक निरीक्षण करने में सक्षम नहीं था। उन्होंने कई प्रमुख इमारतों के इंका पत्थर की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए प्रारंभिक नोट, माप और तस्वीरें लीं। खंडहरों के मूल उद्देश्य के बारे में बिंघम अस्पष्ट था, लेकिन यह तय किया कि कोई संकेत नहीं था कि यह विटकोस के विवरण से मेल खाता है।

Tournism in Machu Picchu – माचू पिचू का पर्यटन 

माचू पिचू एक सांस्कृतिक और प्राकृतिक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल दोनों है। 1911 में इसकी खोज के बाद से, प्रत्येक वर्ष 2017 में 1,411,279 सहित पर्यटकों की संख्या बढ़ती गई है। पेरू के सबसे अधिक पर्यटक आकर्षण और प्रमुख राजस्व जनरेटर के रूप में, यह लगातार आर्थिक और वाणिज्यिक बलों के संपर्क में है। 1990 के दशक के अंत में, पेरू सरकार ने एक केबल कार और एक लक्जरी होटल के निर्माण के लिए रियायतें दीं, जिसमें बुटीक और रेस्तरां के साथ एक पर्यटक परिसर और साइट पर एक पुल भी शामिल था। पेरू और विदेशी वैज्ञानिकों सहित कई लोगों ने योजनाओं का विरोध किया, कहा कि अधिक आगंतुक खंडहरों पर भौतिक बोझ डालेंगे।

 2018 में, पेरूवासियों को माचू पिचू की यात्रा के लिए प्रोत्साहित करने और घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए फिर से एक केबल कार बनाने की योजना को फिर से शुरू किया गया। 2014 में माचू पिचू और पेरू के संस्कृति मंत्रालय में नग्न पर्यटन का चलन था, इस गतिविधि का खंडन किया। कस्को के संस्कृति निदेशक ने अभ्यास को समाप्त करने के लिए निगरानी बढ़ा दी।

Motion Pictures in Machu Picchu – मोशन पिक्चर्स में माचू पिचू

चार्लटन हेस्टन और इमा सुमाक के साथ पैरामाउंट पिक्चर्स की फिल्म सीक्रेट ऑफ द इनकस (1955) को कुस्को और माचू पिच्चू में स्थान पर फिल्माया गया था, जो पहली बार एक प्रमुख हॉलीवुड स्टूडियो साइट पर फिल्माया गया था। पांच सौ स्वदेशी लोगों को फिल्म में एक्स्ट्रा कलाकार के रूप में काम पर रखा गया था। फिल्म अगुइरे, द रथ ऑफ़ गॉड (1972) के शुरूआती सीक्वेंस को माचू पिच्चू क्षेत्र में और हुयाना पिच्चू के पत्थर की सीढ़ी पर शूट किया गया था। माचू पिचू को फिल्म द मोटरसाइकिल डायरीज़ (2004) में प्रमुखता से चित्रित किया गया था, जो मार्क्सवादी क्रांतिकारी चे ग्वेरा के 1952 के युवा यात्रा संस्मरण पर आधारित एक बायोपिक है। 

नोवा टेलीविजन डॉक्यूमेंट्री “घोस्ट ऑफ माचू पिच्चू” माचू पिच्चू के रहस्यों पर एक विस्तृत वृत्तचित्र प्रस्तुत करता है। मल्टीमीडिया कलाकार किमोज़ोजा ने अपनी फिल्म श्रृंखला थ्रेड रूट्स के पहले एपिसोड में मैकचू पिचू के पास 2010 में शूट किए गए फुटेज का इस्तेमाल किया। 

Music – संगीत

दक्षिण भारतीय तमिल सरगर्मी (2010) के गीत “किलिमंजारो” को माचू पिचू में फिल्माया गया था। [89] भारत सरकार से सीधे हस्तक्षेप के बाद ही फिल्म निर्माण की मंजूरी दी गई थी। 

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